उत्पत्ति 1:1-31
1 आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी को बनाया।
2 पृथ्वी बेडौल और सुनसान थी। धरती पर कुछ भी नहीं था। समुद्र पर अंधेरा छाया था और परमेश्वर की आत्मा जल के ऊपर मण्डराती थी।
3 तब परमेश्वर ने कहा, “उजियाला हो” और उजियाला हो गया।
4 परमेश्वर ने उजियाले को देखा और वह जान गया कि यह अच्छा है। तब परमेश्वर ने उजियाले को अंधियारे से अलग किया।
5 परमेश्वर ने उजियाले का नाम “दिन” और अंधियारे का नाम “रात” रखा।
शाम हुई और तब सवेरा हुआ। यह पहला दिन था।
6 तब परमेश्वर ने कहा, “जल को दो भागों में अलग करने के लिए वायुमण्डल हो जाए।”
7 इसलिए परमेश्वर ने वायुमण्डल बनाया और जल को अलग किया। कुछ जल वायुमण्डल के ऊपर था और कुछ वायुमण्डल के नीचे।
8 परमेश्वर ने वायुमण्डल को “आकाश” कहा! तब शाम हुई और सवेरा हुआ। यह दूसरा दिन था।
9 और तब परमेश्वर ने कहा, “पृथ्वी का जल एक जगह इकट्ठा हो जिससे सूखी भूमि दिखाई दे” और ऐसा ही हुआ।
10 परमेश्वर ने सूखी भूमि का नाम “पृथ्वी” रखा और जो पानी इकट्ठा हुआ था, उसे “समुद्र” का नाम दिया। परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है।
11 तब परमेश्वर ने कहा, “पृथ्वी, घास, पौधे जो अन्न उत्पन्न करते हैं, और फलों के पेड़ उगाए। फलों के पेड़ ऐसे फल उत्पन्न करें जिनके फलों के अन्दर बीज हों और हर एक पौधा अपनी जाति का बीज बनाए। इन पौधों को पृथ्वी पर उगने दो” और ऐसा ही हुआ।
12 पृथ्वी ने घास और पौधे उपजाए जो अन्न उत्पन्न करते हैं और ऐसे पेड़, पौधे उगाए जिनके फलों के अन्दर बीज होते हैं। हर एक पौधे ने अपने जाति अनुसार बीज उत्पन्न किए और परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है।
13 तब शाम हुई और सवेरा हुआ। यह तीसरा दिन था।
14 तब परमेश्वर ने कहा, “आकाश में ज्योति होने दो। यह ज्योति दिन को रात से अलग करेंगी। यह ज्योति एक विशेष चिन्ह के रूप में प्रयोग की जाएंगी जो यह बताएंगी कि विशेष सभाएं कब शुरू की जाएं और यह दिनों तथा वर्षों के समय को निश्चित करेंगी।
15 पृथ्वी पर प्रकाश देने के लिए आकाश में ज्योति ठहरें” और ऐसा ही हुआ।
16 तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियाँ बनाईं। परमेश्वर ने उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर राज करने के लिए बनाया और छोटी को रात पर राज करने के लिए बनाया। परमेश्वर ने तारे भी बनाए।
17 परमेश्वर ने इन ज्योतियों को आकाश में इसलिए रखा कि वेह पृथ्वी पर चमकें।
18 परमेश्वर ने इन ज्योतियों को आकाश में इसलिए रखा कि वह दिन तथा रात पर राज करें। इन ज्योतियों ने उजियाले को अंधकार से अलग किया और परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है।
19 तब शाम हुई और सवेरा हुआ। यह चौथा दिन था।
20 तब परमेश्वर ने कहा, “जल, अनेक जलचरों से भर जाए और पक्षी पृथ्वी के ऊपर वायुमण्डल में उड़ें।”
21 इसलिए परमेश्वर ने समुद्र में बहुत बड़े—बड़े जलजन्तु बनाए। परमेश्वर ने समुद्र में विचरण करने वाले प्राणियों को बनाया। समुद्र में भिन्न—भिन्न जाति के जलजन्तु हैं। परमेश्वर ने इन सब की सृष्टि की। परमेश्वर ने हर तरह के पक्षी भी बनाए जो आकाश में उड़ते हैं। परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है।
22 परमेश्वर ने इन जानवरों को आशीष दी, और कहा, “जाओ और बहुत से बच्चे उत्पन्न करो और समुद्र के जल को भर दो। पक्षी भी बहुत बढ़ जाएं।”
23 तब शाम हुई और सवेरा हुआ। यह पाँचवाँ दिन था।
24 तब परमेश्वर ने कहा, “पृथ्वी हर एक जाति के जीवजन्तु उत्पन्न करे। बहुत से भिन्न जाति के जानवर हों। हर जाति के बड़े जानवर और छोटे रेंगनेवाले जानवर हों और यह जानवर अपनी जाति के अनुसार और जानवर बनाएं” और यही सब हुआ।
25 तो, परमेश्वर ने हर जाति के जानवरों को बनाया। परमेश्वर ने जंगली जानवर, पालतू जानवर, और सभी छोटे रेंगनेवाले जीव बनाए और परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है।
26 तब परमेश्वर ने कहा, “अब हम मनुष्य बनाएं। हम मनुष्य को अपने स्वरूप जैसा बनाएगे। मनुष्य हमारी तरह होगा। वह समुद्र की सारी मछलियों पर और आकाश के पक्षियों पर राज करेगा। वह पृथ्वी के सभी बड़े जानवरों और छोटे रेंगनेवाले जीवों पर राज करेगा।”
27 इसलिए परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया। परमेश्वर ने मनुष्य को अपने ही स्वरुप में सृजा। परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी बनाया।
28 परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी। परमेश्वर ने उनसे कहा, “तुम्हारी बहुत सी संताने हों। पृथ्वी को भर दो और उस पर राज करो। समुद्र की मछलियों और आकाश के पक्षियों पर राज करो। हर एक पृथ्वी के जीवजन्तु पर राज करो।”
29 परमेश्वर ने कहा, “देखो, मैंने तुम लोगों को सभी बीज वाले पेड़ पौधे और सारे फलदार पेड़ दिए हैं। ये अन्न तथा फल तुम्हारा भोजन होगा।
30 मैं प्रत्येक हरे पेड़ पौधो जानवरों के लिए दे रहा हूँ। ये हरे पेड़—पौधे उनका भोजन होगा। पृथ्वी का हर एक जानवर, आकाश का हर एक पक्षी और पृथ्वी पर रेंगने वाले सभी जीवजन्तु इस भोजन को खाएंगे।” ये सभी बातें हुईं।
31 परमेश्वर ने अपने द्वारा बनाई हर चीज़ को देखा और परमेश्वर ने देखा कि हर चीज़ बहुत अच्छी है।
शाम हुई और तब सवेरा हुआ। यह छठवाँ दिन था।
कल्पना कीजिए की आप एक नए नाटक के पहले प्रदर्शन के लिए एक थिएटर में है। मंच का पर्दा ऊपर जाता है, लेकिन मंच खाली होता है। तभी लेखक बाहर आता है और दर्शकों को अपना परिचय देता है, वह अपने बारे में बताता है, उसने यह नाटक क्यों लिखा बताता है, और यह किस बारे में बताता है। लेखक अपने अस्तित्व के लिए कोई तर्क पेश नहीं करता है। वह बस अपना परिचय देता है और अपने काम के बारे में बोलना शुरू कर देता है।
बाइबल की शुरुआत परमेश्वर के मंच पर चलने और स्वयं का परिचय देने के साथ होती है: “शुरुआत में, परमेश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की रचना की” (उत्पत्ति 1:1) । लेखक चाहता है कि आप यह जान लें कि आप जो भी देखने वाले हैं वह पूरी तरह से ईश्वर के द्वारा किया गया कार्य है।
सृष्टिकर्ता के पास एक मालिकाना अधिकार हैं। हम ट्रेडमार्क और पेटेंट की दुनिया में रहते हैं । अगर मैं कहता हूं “जस्ट डू इट,” आप तुरंत नाइके के बारे में सोचेंगे क्योंकि इस स्लोगन का मालिकाना हक इसके रचनाकारों के पास है। एक निर्माता के पास हमेशा मालिकाना अधिकार होता हैं, और परमेश्वर ने जो कुछ भी बनाया है, वह उसका मालिक है।
यदि आपका जीवन एक संयोग है, जो मानव इतिहास की उत्पत्ति मे सदियों से उत्पन्न होता आ रहा है, तो आप स्वतंत्र हैं, जो किसी के प्रति जवाब देह नहीं है, बल्कि खुद के लिए जवाब देह होंगे। लेकिन अगर आपकी रचना की गयी थी, तो आपके रचयता को आपके जीवन पर स्वामित्व का पूरा अधिकार है।
इन चीज़ों में से एक नहीं तो दूसरी बात तो सत्य होनी ही चाहिए: या तो आप संयोग से हैं और इसलिए आप पूरी तरह से स्वतंत्र है, और आप जो कुछ भी चाहे अपने जीवन के साथ कर सकते हैं। या फिर आपकी रचना की गई है और आपके रचयता के पास आपके जीवन पर स्वामित्व का पूर्ण अधिकार है।
परमेश्वर स्वयं को सृष्टिकर्ता के रूप में परिचय देते हैं और इसलिए वह स्वामी हैं। आप अपने आप से नहीं हैं। आपका जीवन प्रभु द्वारा आपको दिया गया एक विश्वास है। इसका मतलब है कि आप बेमूल्य नहीं हैं। आप इस दुनिया में बिना सोचे समझे नहीं लाये गए हैं। परमेश्वर ने आपको चुना अस्तित्व में लाने के लिए, और उसने इसे उद्देश्य हेतु किया। आप उस उद्देश्य को खोज पाएंगे जब आप परमेश्वर को और करीब से जान पाएंगे जिसने आपकी रचना की है।
परमेश्वर की छवि
फिर परमेश्वर ने कहा, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं” (उत्पत्ति 1:26)। बहुवचन “हम” पर ध्यान दें। यह परमेश्वर के स्वभाव के बारे में एक मनोहर इशारा है और इसके बारे में हम आगे के पाठ में देखेंगे।
रचना के पांच दिन बाद, ताज का क्षण आता है। यह लगभग ऐसा है जैसे परमेश्वर ने स्वयं के साथ वार्तालाप की है: “चलो ऐसा करते हैं! हम अपनी छवि में मनुष्य बनाते है। ” छवि एक प्रतिबिंब है, और इसलिए परमेश्वर हमें बता रहा है कि उसने हमें इस तरह से बनाया है कि हम स्वयं के अंदर उसके स्वभाव और महिमा की परछाई को दिखा सकें।
परमेश्वर की छवि ही इंसानों को जानवरों से अलग करती है। परमेश्वर ने जानवरों को बनाया, किन्तु परमेश्वर ने किसी भी जानवर को अपने जैसी छवि नहीं दी। इसीलिए किसी भी पुरुष या महिला के साथ जानवरों जैसा बर्ताव नहीं होना चाहिए और ना ही किसी भी मनुष्य को जानवरों जैसा बर्ताव करना चाहिए और ना ही किसी भी मनुष्य को जानवरों जैसा बर्ताव करना चाहिए । जो पुरुष एवं महिलाएं ये मानते हैं कि वे केवल विकसित जानवर हैं, वे सबसे अहम् बात भूल जातें है जो परमेश्वर उनके बारे में बताते हैं। हम परमेश्वर की छवि में बनाएं गए हैं!
जीवन की सांस
नर और नारी को परमेश्वर ने अपनी छवि में बनाया है, परन्तु हमें ये हमेशा याद रखना चाहिए की हम परमेश्वर नहीं हैं। परमेश्वर ने आदि मानव को जमीन की धूल से बनाया, इसलिए हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए अगर जैविक स्तर पर इन्सानों में जानवरों जैसी समानताएं हों। परन्तु मानव जीवन किसी भी प्रकार के विज्ञान से परे है।
“और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवित प्राणी बन गया” (उत्पत्ति 2:7) । परमेश्वर ने एक शरीर बनाया जो जमीन पर बेजान पड़ा था। तब परमेश्वर ने उस बेजान शरीर में सांस फूकी। उसने मनुष्य को जीवन की सांस दी, और बेजान शरीर एक जीवित, आत्म जागरूक प्राणी बन गया ।
परमेश्वर हमेशा से वो ही कर रहा है जो उसने उस दिन किया था [परमेश्वर ] मानवजाति को जीवन और श्वास और सब कुछ देता है” (प्रेरितों के काम 17:25)। परमेश्वर आपको एक बार में एक सांस देता है। आप हर एक साँस के लिए परमेश्वर पर निर्भर हैं, वही आपको प्रदान करता हैं। यदि आप इन जुड़वां सत्यों को समझ सकते हैं कि आप परमेश्वर की छवि में बने हैं और आप उस पर निर्भर हैं – तो आप एक महान गरिमा और साथ ही, एक गहन विनम्रता को प्राप्त करेगें।
परमेश्वर ने आदम को चार विशेष उपहार दिए, जिसने उसके जीवन को आश्चर्यजनक रूप से समृद्ध बना दिया- एक स्थान, एक उद्देश्य, एक साथी, और सबसे बढ़कर, परमेश्वर की उपस्थिति का उपहार।
परमेश्वर के सथ चलना
परमेश्वर आत्मा है। इसका मतलब है कि वह मानवीय आंखों के लिए अदृश्य है। फिर भी बाइबल की शुरुआत में ही हम आदम और हव्वा से संबंधित परमेश्वर के बारे में इस तरह से पढ़ते हैं कि वे उन्हे देख पा रहे थे, उन्हे सुन पा रहे थे और उनका आनंद उठा पा रहे थे। “तब पुरुष और स्त्री ने दिन के ठण्डे समय में यहोवा परमेश्वर के आने की आवाज बाग में सुनी” (उत्पत्ति 3:8) ।
पुराने नियम में परमेश्वर के दृश्य रूप में प्रकट होने के कई उदाहरण हैं। हम इसे थियोफ़नीज़ कहते हैं। आगे बाइबल के पाठों में, हम देखेंगे कि परमेश्वर मनुष्य बन गए, इसलिए यह अजीब नहीं लगना चाहिए कि पुराने नियम में वह दृश्य रूप में प्रकट होते थे।
ये उपस्थिती हमें परमेश्वर के हृदय में हमारे साथ सहचर्य करने की तीव्र इच्छा को दिखाती हैं। यह लगभग ऐसा है मानो परमेश्वर का पुत्र आने का इंतजार नहीं कर सकता। वह मानव समय और स्थान में प्रवेश करते हुए स्वर्ग से बाहर निकल आयें, और बगीचे में प्रथम पुरुष और स्त्री के साथ चलें ।
कल्पना कीजिए कि वह कैसा रहा होगा! आदम ने दिन में जो कुछ किया उसे जानने की परमेश्वर को उत्सुकता थी, और वह वही सुन रहा था जो हव्वा के मन में था। और परमेश्वर चाहते है कि आप उनके साथ इसी प्रकार के सम्बंध का आनंद लें।
जैसा कि हम अगले पाठ में देखेंगे, परमेश्वर और मनुष्य के बीच की यह संगति टूट जाती है, और यह मानव इतिहास में पीढ़ी दर पीढ़ी तक बना रहा। मसीह उस टूटे हुए रिश्ते को बचाने और हमें फिर से परमेश्वर के साथ चलने योग्य बनाने के लिए इस दुनिया में आए।
हम परमेश्वर को नहीं देख सकते हैं, लेकिन जब हम विश्वास के साथ और जब यीशु मसीह के नाम पर उनके पास आते हैं, तो उनकी उपस्थिति उतनी ही वास्तविक होती है, जितनी तब थी जब वे आदम को साक्षात रूप में प्रकट हुए थे। अगली बार जब आप प्रार्थना करें तो इसके बारे में विचार करें।
घर कह जने वल एक स्थन
अदन के स्थान के बारे में सही रूप से बताना मुश्किल है, परंतु महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक वास्तविक स्थान था और प्रभु ने नर और नारी को वहां रखा: “तब यहोवा परमेश्वर ने पूर्व में अदन नामक जगह में एक बाग लगाया। यहोवा परमेश्वर ने अपने बनाए मनुष्य को इसी बाग में रखा” (उत्पत्ति 2:8) ।
परमेश्वर ने एक ऐसा स्थान बनाया जहां आदम उसकी आशीष को जाने और उसका आनंद उठाए, और वह हमारे लिए भी ऐसा ही करता है। उसने हम सभी के रहने के लिए निर्धारित स्थान नियुक्त किया है (देखें प्रेरितों के काम 17:26) । कल्पना करने की कोशिश करें कि परमेश्वर आपके साथ आपके घर, आपके कार्यस्थल, या आपके चर्च में चल रहे है, और कह रहे है, “यह वह जगह है जिसे मैंने तुम्हारे लिए तैयार किया है।” हममें से कोई भी जहां रह रहा है, वो संयोगवश नहीं है। जिस प्रकार आदम जानता था वैसे ही जब आप जान जाएगें। कि आप जहां पर हो वह परमेश्वर का दिया हुआ निर्धारित स्थान है, तब आपके पास सबसे कठिन समय में भी स्थिरता होगी।
कार्य किया जाना हे
परमेश्वर, जिसने “ज्योति को दिन” और “अंधकार को रात” कहा (उत्पत्ति) 1:5), चीजों के नामकरण करने के अपने कार्य में भाग लेने के लिए आदम को आमंत्रित किया:”यहोवा ने पृथ्वी के हर एक जानवर और आकाश के हर एक पक्षी को भूमि की मिट्टी से बनाया। यहोवा इन सभी जीवों को मनुष्य के सामने लाया और मनुष्य ने हर एक का नाम रखा (2:19) ।
शुरू से ही आदम काम में लगा हुआ था “तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को लेकर अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उसमें काम करे और उसकी रक्षा करे” (2:15)। पाप के संसार में आने से पहले कार्य अस्तित्व में था, और पाप के साफ हो जाने के बाद भी यह जारी रहेगा। पाप ने हमारे कार्यों को प्रभावित किया है और पाप ही ने निराशा का परिचय दिया है, लेकिन कार्य के बारे में पहली बात ये है, कि यह परमेश्वर की ओर से एक अच्छा उपहार है।
परमेश्वर के पास आपके करने के लिए कार्य है, और आपको यह सोचने में मदद मिलेगी कि आपका कार्य किस प्रकार परमेश्वर के कार्य को दर्शाता है।परमेश्वर अव्यवस्था को व्यवस्थित करता है। जब आप अपनी कोठरी की सफाई करते हैं, या घर को ठीक करते हैं, या फिर जब आप अपने व्यापार का आयोजन करते हैं, तो आप परमेश्वर के कार्य को दर्शा रहें होते हैं। परमेश्वर वही बनाता है जो सुंदर है। यदि आप रंगते हैं, चित्र बनाते हैं, या कोई आकार बनाते हैं, तो आप परमेश्वर के कार्य को दर्शा रहें होते हैं। परमेश्वर रक्षा करता है, और हर कोई जो दूसरों की सुरक्षा का ध्यान रखता है, वह भी परमेश्वर के कार्य को दर्शाता है। परमेश्वर प्रदान करता है, और वे सभी जो घर बनाने में, खेती करने में, परिवाहन चलाने में, बेचने या पकाने में कोई भूमिका निभाते हैं, वे परमेश्वर के कार्य को दर्शाते हैं। विचार करें कि किस प्रकार आपका कार्य परमेश्वर के कार्य को दर्शाता है, और आपको यह जानकर बहुत खुशी होगी कि यही वह कार्य है जिसे करने के लिए उसने आपको दिया है।
जानवरों को उसके पास लाकर परमेश्वर ने आदम के दैनिक कार्य में व्यक्तिगत रुचि ली (2:19)। आदम परमेश्वर का सहकर्मी था।परमेश्वर ने उसके साथ और उसके द्वारा कार्य किया, और इस तरह से परमेश्वर का संसार के लिए उद्देश्य आगे बढ़ा। परमेश्वर आपके दैनिक कार्य की परवाह करता है, और वह उनका सहभागी बनना चाहता है। यह आपके डेस्क पर दुकान के फर्श पर स्कूल में, या रसोई के सिंक के पास सोचने लायक है।
स्वर्ग में तैयार किया गया विवाह
“तब यहोवा परमेश्वर ने कहा, ‘मैं समझता हूँ कि मनुष्य का अकेला रहना ठीक नहीं है मैं उसके लिए एक सहायक बनाऊँगा जो उसके लिए उपयुक्त होगा’… यहोवा परमेश्वर ने मनुष्य की पसली से स्त्री की रचना की। तब यहोवा परमेश्वर स्त्री को मनुष्य के पास लाया” (उत्पत्ति 2:18, 22)।
एक बार फिर प्रभु ने आदम को दर्शन दिया, और कहा, “आदम, मैं तुमको किसी से मिलना चाहता हूँ।” मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि आदम चकित हुआ होगा। वह निश्चित रूप से बहुत प्रसन्न लग रहा होगा! उसने कहा, “इसकी हड्डियाँ मेरी हड्डियों से आई इसका शरीर मेरे शरीर से आया” (2:23)।
ध्यान दें, प्रभु स्वयं दोनों को एक साथ लाए। पहला विवाह सामारोह सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा आयोजित किया गया था। अपने मन में इस दृश्य की कल्पना करने का प्रयास करें: प्रभु परमेश्वर स्त्री का हाथ लेते हैं और उसे अपने हाथ में रखते हैं, और कहते हैं, “यह वह साथी है जिसे मैंने तुम्हारे लिए बनाया है। एक-दूसरे की मदद करो और एक-दूसरे से प्यार करो। “
हम आगे के पाठ में देखेंगे कि इस विवाह में भी परेशानियाँ थीं । परंतु चाहे उनकी जो भी समस्याएं थीं, आदम और हव्वा ये जानते थे कि वे एक साथ इसलिए है क्योंकि उन दोनों को परमेश्वर ने बांधा था।
हर शादी में कई बार ऐसा होता है जब पति-पत्नी को इस पर वापस आने की जरूरत होती है। विवाह परमेश्वर द्वारा एक पुरुष और एक स्त्री का मिलन है। जैसा कि पवित्रशास्त्र कहता है,”इसलिए पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक तन हो जाएंगे (2:24)।
यदि आप विवाहित हैं, तो कल्पना कीजिये की परमेश्वर आपके और आपके जीवनसाथी के हाथ को मिला रहे है। और ऐसा करते हुये परमेश्वर कहते हैं, एक साथ जीवन बिताओ, एक दूसरे से प्रेम करो, और एक दूसरे को क्षमा करो।” यही परमेश्वर ने हव्वा और आदम के लिए किया था, और यदि आप विवाहित हैं, तो परमेश्वर ने आपके लिए भी यही किया है। और जब आप ये जान जाएंगे कि परमेश्वर ने आपको और आपके जीवनसाथी को एक साथ जोड़ा है, तब आप जीवन के सबसे कठिन तूफानों का सामना कर पाएंगे।
यदि आप एक विवाह के लिए एक साथी की तलाश कर रहे हैं, तो याद रखें कि परमेश्वर ने हव्वा और आदम को एक साथ परमेश्वर लाया था। सही जीवनसाथी को खोजना काफी मुश्किल हो सकता है, लेकिन आप परमेश्वर पे पूर्ण विश्वास कर सकते हैं कि वे, सही जीवनसाथी को आपके पास लाएँगे, या आपको उनके पास ले जाएंगे। मैं यह सुझाव नहीं दे रहा हूं कि आपको निष्क्रिय होना चाहिए, लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है। आप अपने जीवन के हर क्षेत्र में प्रभु पर भरोसा कर सकते हैं।
परमेश्वर चाहतें है कि आप जान लें कि वह सभी चीजों का स्वामी है, और आपका भी। परमेश्वर यह भी चाहता है कि आपको पता चले कि उसने आपको अपनी छवि में बनाया है और इस कारण से आपके पास विशेष गरिमा और मूल्य है।
मानव इतिहास की शुरुआत में, परमेश्वर ने हमारे प्रथम माता-पिता को ये अवसर दिया की वे परमेश्वर को जान पाएँ और उनका आनंद ले पाएँ। वह आदमी और उसकी पत्नी को साथ ले आया। वह उन्हें उनके घर ले गया और उन्हें उनका कार्य दिया। उन्होंने वह सब प्रदान किया जिसकी उन्हें आवश्यकता थी, और उसने उनके जीवन में साझा किया।परमेश्वर ने उनके लिए जो किया, वह आज भी जारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि हम उसे ऐसा करते नहीं देख पाते है। हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं (2 कुरिन्थियों 5:7) ।
परमेश्वर के वचन के साथ और अधिक जुड़ने के लिए इन प्रश्नों का प्रयोग करें। किसी अन्य व्यक्ति के साथ इन प्रश्नों पर विचार विमन करें या इन प्रश्नों को आत्म विश्लेषण के लिए प्रयोग करें ।
1. सृष्टि के विवरण पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है – कि परमेश्वर नें आपको बनाया है, और इसलिए आप उसके हैं? संदेह ? डर? आराम सुकून ? अन्य?
2. क्या आपको लगता है कि यह वास्तव में मायने रखता है कि क्या आप जानबूझकर परमेश्वर द्वारा बनाए गए थे या आप इत्तेफाक के परिणाम हैं? क्यों या क्यों नहीं?
3. आपके विचार से बाइबल का क्या अर्थ है जब यह कहती है कि परमेश्वर ने हमें ” अपने स्वरूप के अनुसार” बनाया (उत्पत्ति 1:27)?
4. क्या आप आदम और हव्वा की तरह अदन की वाटिका में “परमेश्वर के साथ-साथ चलने” का अनुभव करना चाहेंगे? क्यों या क्यों नहीं?
5. आपके लिए यह जानने का क्या अर्थ होगा कि आपका घर; आपकी नौकरी या स्कूल; या आपका जीवनसाथी, आपको स्वयं परमेश्वर की ओर से उपहार है?